Sunday, September 11, 2011

आज का युग आर्थिक युग है और अर्थ को लेकर एक कहावत मै हमेशा सुनता आ रहा हूँ "पैसा खुदा तो नही पर, खुदा से कम नहीं भी"कुछ चीजों को छोड़ दे तो आज पैसे से हर चीज खरीदी जाती है उसके बगैर बहुत से काम रुक जाते है या नहीं हो  पाते है . जिसके पास पैसा नहीं है वाही जनता ही उसके बगैर क्या काम रुका है या रुक जाता है . पैसा बिना मेहनत के नहीं मिलता फिर मेहनत मानसिक हो या शारीरिक और आज पैसा कमाने के लिए गाँव का मालिक किसान शहर की ओर पलायन कर रह है किसी का नौकर बनाकर मजदूरी कर रहा है . जबकि किसान स्वयं उत्पादक है जिसका प्रमुख व्यवसाय खेती है और जमीन उसकी कंपनी है . किसान की कंपनी में अति आवश्यक दैनिक उपयोग की वस्तुओं का उत्पादन होता है जैसे :- चावल, दाल, गेहूं, कपास, सरसों, तिल, फल, सब्जी - भाजी, आदि तयार होते है . इनके बैगैर मनुष्य जीवित ही नहीं रह सकता फिर भी किसान भाई को लाभ नहीं हो रहा उसकी कंपनी को घटा ही हो रहा है और वहा चिंतित है इस लिए मजदूरी करना उसे  अछा लग रहा है . जबकि पहले किसान खुश थे उनके द्वारा सबकी रोजी रोटी चलती थी और एक कहावत भी मैंने सुनी है "उतम खेती माद्यम बाण निकट चाकरी भिक निधान"और गाँव भी स्वावलंबी थे अपने आप में पूर्ण थे . आज खेती चिंता का विषय है  अगर यही हाल रहा तो तो गाँव उजाड़ जायेंगे हमें भूखे मरने की बारी आएगी . पर इस परिस्थिति के लिए हम ही जिम्मेदार है हमने ही जमीन को ख़राब किया है इसलिए किसान का चिंतित रहना स्वाभाविक है और उसकी चिंता के निम्न कारन भी है 

  1. किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नही मिल रहा है 
  2. जमीन (किसान की कंपनी) को रासायनिक खाद के दुष्परिणाम से उर्वरा (उत्पादन) शक्ति का काम होते जाना 
  3. जमीन के मित्र कीटों का नस्ट होना .
  4. जमीन कड़ी होकर पानी का रिसाव (सोखना) नहीं होना .
  5. रासायनिक खाद के उपयोग से जमीन के सभी पौष्टिक तत्व का नस्ट हो जाना .
  6. रासायनिक खाद के प्रयोग के कारन कृषि उत्पादों में विटामिन की कमी होना और विषैले रसायनों का अन्न के द्वारा शारीर में प्रवेश 
   

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